Jeet aapki by shiv khera
CHAPTER-1 ( नज़रिए का महत्त्व )
एक आदमी मेले में balloon beech कर गुजर - बसर करता था । उसके पास लाल , नीले , पीले , हरे और इसके अलावा कई रंगों के गुब्बारे थे । जब उसकी बिफी कम होने लगती तो वह हीलियम गैस से भरा एक गुब्बारा हवा में उड़ा देता । बच्चे जब उस उड़ते गुब्बारे को देखते , तो वैसा ही गुब्बारा पाने के लिए आतुर हो उठते । वे उसके पास गुब्बारे खरीदने के लिए पहुँच जाते , और उस आदमी की बिक्री फिर बढ़ने लगती । उस आदमी की बिक्री जब भी घटती , वह उसे बढ़ाने के लिए गुब्बारे उड़ाने का यही तरीका अपनाता । एक दिन गुब्बारे वाले को महसूस हुआ कि कोई उसके जैकेट को खींच रहा है । उसने पलट कर देखा तो वहाँ एक बच्चा खडा था । बच्चे ने उससे पूछा , “ अगर आप हवा में किसी काले गुब्बारे को छोड़े , तो क्या वह भी उड़ेगा ? " बच्चे के इस सवाल ने गुब्बारे वाले के मन को छू लिया । बच्चे की ओर मुड़ कर उसने जवाब दिया , “ बेटे , गुब्बारा अपने रंग की वजह से नहीं , बल्कि उसके अंदर भरी चीज़ की वजह से उड़ता है । " हमारी जिंदगी में भी यही उसूल लागू होता है । अहम चीज हमारी अंदरूनी गरिसपत है । हमारी अंदरुनी शरियत की वजह से हमारा जो नज़रिया बनता वही हमें ऊपर उठाता है । हार्वर्ड विश्वविद्यालय ( Harvard University ) के विलियम जेम्स ( William James ) का कहना है , हमारी पीढ़ी की सबसे बड़ी खोत यह है कि इसान अपना नजरिया बदल कर अपनी जिंदगी को बेहतर बना सकता है ।
हमारा नज़रिया हमें क़ामयाबी दिलाता है । OUR ATTITUDE CONTRIBUTES TO SUCCESS
हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक , 85 प्रतिशत मौकों पर किसी इंसान को नौकरी या तरक्की उसके नजरिए की वजह से मिलती । है , जबकि अक्लमंदी या सास तथ्यों ( facts ) और आंकड़ों ( figures ) की जानकारी की वजह से केवल 15 प्रतिशत मौकों पर ही मिलती हैं । ताज्जुब की बात है कि जिंदगी में कामयाबी दिलाने में तथ्यों और आंकड़ों की केवल 15 प्रतिशत हिस्सेदारी होती है , पर शिक्षा के मद की सारी रकम इन चीजों को पढ़ाने में । खर्च की जाती है ।
जीत आपकी ' नाम की यह किताव फ़ामयाबी के बाकी 85 प्रतिशत बारे में ही है । अंग्रेजी भाषा में 1iritude ( नशरिया ) सबसे महत्त्वपूर्ण लफ्ज है । यह जिदगी के हर पहलू पर असर डालता है , यहाँ तक कि आदमी की निजी और । व्यावसायिक जिदगी पर भी । क्या कोई आदमी अच्छे नजरिए के बिना अच्छा अफसर बन सकता है ? क्या कोई छात्र ( student ) अच्छे नज़रिए के बिना अच्छा छात्र बन सकता है ? क्या माँ - बाप , शिक्षक , सेल्समैन , मालिक या कर्मचारी अच्छ । नजरिए के बगैर अपना किरदार ( role ) अच्छी तरह निभा सकते हैं ? हमारा क्षेत्र चाहे जो हो , क़ामयाबी की बुनियाद तो नज़रिया ही है । । अगर क़ामयाब होने के लिए नज़रिए की इतनी अहमियत है तो क्या हमें जिंदगी के बारे में अपने नज़रिए की जाँच - परख नहीं करनी चाहिए और क्या हमें खुद से यह सवाल नहीं करना चाहिए कि हमारा नजरिया हमारे मकसद पर कैसे असर डाल सकता है ?
हीरों से भरा खेत ACRES OF DIAMONDS
हफीज अफ्रीका का एक किसान था । वह अपनी जिंदगी से खुश और । संतुष्ट था । हफ़ीज खुश इसलिए था कि वह संतुष्ट था । वह संतुष्ट इसलिए था क्योंकि वह खुश था । एक दिन एक अक्लमंद आदमी उसके पास आया । उसने हफ़ीज को हीरों के महत्त्व और उनसे जुड़ी ताकत के बारे में बताया । उसने हफ़ीज से कहा , “ अगर तुम्हारे पास अंगूठे जितना भी बड़ा हीरा हो , तो तुम पूरा शहर खरीद सकते हो , और अगर तुम्हारे पास मुट्ठी जितना बड़ा हीरा हो तो तुम अपने लिए शायद पूरा देश ही खरीद लो । " वह अक्लमंद आदमी इतना कह कर चला गया । उस रात हफ़ीज सो नहीं सका । वह असंतुष्ट हो चुका था , इसलिए उसकी खुशी भी खत्म हो चुकी थी । दूसरे दिन सुबह होते ही हफ़ीज ने अपने खेतों को बेचने और अपने परिवार की देखभाल का इंतजाम किया , और हीरे खोजने के लिए रवाना हो गया । वह हीरों की खोज में पूरे अफ्रीका में भटकता रहा , पर उन्हें पा नहीं सका । उसने उन्हें यूरोप में भी ढूंढा , पर वे उसे वहाँभी नहीं मिले । स्पेन पहुँचते - पहुँचते वह मानसिक , शारीरिक और आर्थिक स्तर पर पूरी तरह टूट चुका था । वह इतना मायूस हो चुका था कि उसने बार्सिलोना ( Barcelona ) नदी में कूद कर खुदकुशी कर ली । | इघर जिस आदमी ने हफीज के खेत खरीदे थे , वह एक दिन उन खेतों से होकर बहने वाले नाले में अपने ऊंटों को पानी पिला रहा था । तभी सुबह के वक्त उग रहे सूरज की किरणें नाले के दूसरी ओर पड़े एक पत्थर पर पड़ी , और वह इंद्रधनुष की तरह जगमगा उठा । यह सोच कर कि वह पत्थर उसकी बैठक में अच्छा दिखेगा , उसने उसे उठा कर अपनी बैठक में सजा दिया । उसी दिन दोपहर में हफीज को हीरों के बारे में बताने वाला आदमी खेतों के इस नए मालिक के पास । आया । उसने उस जगमगाते हुए पत्थर को देख कर पूछा , “ क्या हफ़ीज लौट आया ? " नए मालिक ने जवाब दिया , “ नहीं , लेकिन आपने यह सवाल क्यों पूछा ? " अक्लमंद आदमी ने जवाब दिया , “ क्योंकि यह हीरा है । मैं उन्हें देखते ही पहचान जाता हूँ । " नए मालिक ने कहा , “ नहीं , यह तो महज एक पत्थर है । मैंने इसे नाले के पास से उठाया है । आइए , मैं आपको दिखाता हूँ । वहाँ पर ऐसे बहुत सारे पत्थर पड़े हुए हैं । उन्होंने वहाँ से नमूने के तौर पर बहुत सारे पत्थर उठाए , और उन्हें जाँचने - परखने के लिए भेज दिया । वे पत्थर हीरे ही सावित हुए । उन्होंने पाया कि उस खेत में दूर - दूर तक हीरे दबे हुए थे । इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है ? इससे हमें छह सीख मिलते हैं - 1 जब हमारा नज़रिया सही होता है , तो हमें महसूस होता है कि हम हीरों से भरी हुई जमीन पर चल रहे हैं । मौके हमेशा हमारे पावों तले दबे हुए हैं । हमें उनकी तलाश में कहीं जाने की जरूरत नहीं है । हमें केवल उनको लेना है । । 2 के खेत की घास हमेशा हरी लगती है । . हम दूसरों के पास मौजूद चीज़ों को देख कर ललचाते रहते हैं इसी तरह दूसरे हमारे पास मौजूद चीजों को देख कर ललचाते हैं । हमसे
अपनी जगह की अदलाबदली करने का मौका हासिल करके उन्हें खुशी होगी । 4 . जिन्हें मौके की पहचान नहीं होती , उन्हें मौके का खटखटाना शोर लगता है । 5 . मौका जब आता है , तो लोग उसकी मियत नहीं पहचानते । जब मौका जाने लगता है , तो उसके पीछे भागते हैं । कोई मौका दोबारा नहीं खटखटाता । दूसरा मौका पहले वाले मौके से बेहतर या बदतर हो सकता है , पर वह ठीक पहले वाले मौके जैसा नहीं हो सकता । इसीलिए सही बात पर सही फैसला लेना बेहद जरूरी होता । है । गलत बात पर लिया गया सही फैसला भी गलत फैसला बन जाता । है ।
डेविड और गोलियथ DAVID AND GOLIATH
हम सभी बाइबिल में बताई गई डेविड और गोलियथ की कहानी जानते है । गोलिपथ एक राक्षस था । उसने हर आदमी के दिल में अपनी दहशत बैठा रखी थी । एक दिन 17 साल का एक भेड़ चराने वाला लड़का अपने भाईयों से मिलने के लिए आया । उसने पूछा , “ तुम लोग इस राक्षस से लड़ते क्यों नहीं हो ? " उसके भाई गोलियथ से डरते थे । उन्होंने जवाब दिया , “ क्या तुमने देखा नहीं कि वह इतना बड़ा है कि उसे मारा नहीं जा सकता ? " इस पर डेविड ने कहा , “ बात यह नहीं है कि बडा होने की वजह से उसे मारा नहीं जा सकता , बल्कि हकीकत यह है कि वह इतना बड़ा है कि उस पर लगाया गया निशाना चूक ही नहीं सकता । " उसके बाद जो हुआ , वह सबको मालूम है । डेविड ने उस राक्षस को गुलेल से मार डाला । राक्षस वही था , लेकिन उसके बारे में डेविड का नजरिया अलग था । हम नाकामयाबी को कैसे देखते हैं , यह हमारे नजरिए से तय होता है । । आशावादी ( positive ) सोच वाले आदमी के लिए नज़रिया कामयाबी की सीढ़ी बन सकता है । दूसरी ओर निराशावादी ( negative ) सोच के आदमी के लिए यह रास्तेका रोड़ा बन सकता है । थिंक एंड ग्रो रिच ( Taitikari / Grow Riceli ) और कई अन्य किताबों के लेखक नेपोलियन हिल ( Nanolcan Hill ) का कहना है कि हर समस्या अपने साथ अपने बराबर का या अपने से भी बड़ा अवसर साथ लाती है
संस्थाओं के लिए नजरिए का महत्त्व THE IMPORTANCE OF ATTITUDE TO ORGANISATIONS
क्या आपको कभी इस बात पर हैरानी हुई है कि कुछ लोग , संस्थाएं या देश दूसरों के मुकाबले अधिक क़ामयाब क्यों होते हैं ? इसमें कोई राज नहीं छिपा है । वे इसलिए क़ामयाब होते हैं कि वे दूसरों के मुकाबले अधिक असरदार ढंग से सोचते और काम करते हैं । वे अपनी सबसे कीमती जायदाद , यानी लोगों में निवेश ( invest ) करते हैं । मैंने दुनिया की कई बड़ी कार्पोरेशनों के आला अफ़सरों ( Executives ) से की , और उनसे पूछा – “ अगर आपके पास जादू की छड़ी हो , और आपको केवल एक ऐसी चीज बदलनी हो , जिससे आपको तरक़ी मिल जाए , साथ ही उत्पादकता ( productivity ) और लाभ भी बढ़ जाए तो आप किस चीज को बदलना चाहेंगे ? " सबका जवाब एक ही था । उनका कहना था कि वे अपने लोगों का नजरिया बदलना चाहेंगे । नजरिया बेहतर होने पर लोगों में टीमभावना बढ़ेगी , बरबादी कम होगी , और वे ज्यादा वफ़ादार हो जाएंगे । कुल मिला कर उनकी कंपनी में काम करने का बेहतर माहौल बन जाएगा । तजरबा बताता है कि किसी भी व्यापार की सबसे कीमती पूँजी उससे जुड़े लोग होते हैं । पूँजी या औज़ारों से लोगों की कीमत अधिक होती है । बदकिस्मती से सबसे ज्यादा मानव - संसाधन ( Human resource ) ही व्यर्थ या बेकार चला जाता है । लोग आपकी सबसे बड़ी संपत्ति बन सकते हैं , या सबसे बड़ा बोझ भी बन सकते हैं ।
टीक्यू पी – सारी खूबियों वाले लोग TOP - TOTAL QUALITY PEOPLE
बहुत सारे ट्रेनिंग प्रोग्राम जैसे कि कस्टमर सर्विस ( customerservice ) , सेलिग स्किल्स ( selling skills ) और स्टैटेजिक प्लानिंग ( strategicplanning ) के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा हैं कि इनमें से ज्यादातर कार्यक्रम काफी अच्छे होते हैं , लेकिन इनके सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है । इनमें से कोई भी तब तक कामयाब नहीं हो सकता जबतक उनकी बुनियाद सही न हो और वह सही बुनियाद है टी क्यू पी । यह टी क्यू पी क्या है ? इसका मतलब है - टोटल क्वालिटी पीपॅल ( TotalQuality People ) , यानी सारी खूबियों से भरे लोग । यानी वे लोग जो अच्छे चरित्र वाले , ईमानदार , नैतिक मूल्यों और सकरात्मक नजरिए ( positive attitude ) वाले लोग होते हैं । | मुझे गलत न समझे । आपको दूसरे सारे प्रोग्रामों की जरूरत है लेकिन वे तभी सफल होंगे , जब आपकी नींव सही होगी और वह नींव है - टी क्यू पी । उदाहरण के तौर पर कुछ ग्राहक सेवा कार्यक्रमों ( customer service programmes ) म हिस्सेदारी करने वालों को " प्लीज ” या “ बैंक यू " कहना , मुस्कराना और हाथ मिलाना सिखाया जाता है ; लेकिन किसी आदमी में सेवा करने का जज्बा ही न हो , तो वह कब तक मुस्करा सकता है ? इसके अलावा लोग नक़ली मुस्कान को पहचान जाते हैं और अगर मुस्कान सच्ची न हो तो उसे देख कर चिढ़ पैदा होती । है । मेरा कहना यह है कि असलियत को दिखावे पर हावी होना चाहिए , न कि दिखावे को असलियत पर । बेशक , ग्राहकों से पेश आने वाले लोगों को “ प्लीज " और “ बैंक यू " कहना चाहिए , और मुस्कराना चाहिए । ये बातें महत्त्वूपर्ण हैं । लेकिन याद रखें कि अगर मन में सेवा करने की भावना हो , तो आम जिंदगी में ये बातें खुद - ब - खुद आसानी से शामिल हो जाते हैं । | एक बार एक आदमी मशहूर फ्रांसीसी दार्शनिक ( Philosopher ) ब्लेज़ पास्कल ( Blaise Pascul ) से मिला , और उनसे कहा – “ अगर मेरे पास आपके जैसा दिमाग़ हो , तो मैं बेहतर इंसान बन जाऊँगा । " इस पर पास्कल ने जवाब दिया “ बेहतर इंसान बनो , तुम्हारा दिमाग खुद - ब - खुद मेरे जैसा हो जाएगा । " महान संगठनों ( organisations ) को तनख़्वाहों या काम करने के हालात के पैमाने पर नहीं आँका जाता है । उन्हें भावना , नजरिए और आपसी संबंधों के पैमानों पर आँका जाता है । जब कर्मचारी कहते हैं , " मैं यह काम नहीं कर सकता " , तो इसके दो मायने हो सकते हैं - या तो उनका मतलब है कि उन्हें वह काम करने का तरीका मालूम नहीं है , या फिर वे उस काम को करना नहीं चाहते हैं । अगर वे काम करने का तरीका नहीं जानते हैं , तो यह टेक्निकल ट्रेनिंग ( technical training ) का मुद्दा है , लेकिन अगर वे काम नहीं करना चाहते हैं , तो यह नजरिए से जुड़ा मुद्दा हो सकता है ( उन्हें उस काम की परवाह नहीं है ) , या वह नैतिकता का मुद्दा हो सकता है ( वे मानते हैं कि उन्हें वह काम नहीं करना चाहिए ) कैलगेरी टॉवर ( Calgary Tower ) की ऊँचाई 190 . 8 मीटर है । उसका कुल वज़न 10 , 884 टन है । उसमें से 6 , 349 टन ( कुल वज़न का लगभग 60 प्रतिशत भाग ) वज़न जमीन के अंदर है । इससे जाहिर होता है कि भव्य दिखने वाली कई इमारतों की नींव काफ़ी मजबूत होती है । जिस तरह किसी भव्य इमारत टिके रहने के लिए उसकी नींव मज़बूत होनी चाहिए , उसी तरह कामयाबी के टिके रहने के लिए भी मज़बूत बुनियाद की जरूरत होती है और कामयाबी की बुनियाद होती है नज़रिया । ।
संपूर्णतावादी नज़रिया A HOLISTIC APPROACH
में संपूर्णतावादी ( holistic ) नज़रिए में यक़ीन रखता हैं । हम केवल हाथ , पाँव ! आँख , कान , दिल और दिमाग नहीं , बल्कि एक संपूर्ण इंसान हैं । काम करने के लिए एक पूरा आदमी जाता है , और काम करके एक पूरा आदमी लोटता है । घर की परेशानियाँ ( family problems ) हमारे कामकाज पर , और कामकाज से जुड़ी परेशानियाँ ( work probleins ) हमारी पारिवारिक जिदगी पर असर डालती हैं । पारिवारिक समस्याओं की वजह से तनाव का शिकार होने पर हमारी उत्पादकता ( productivity ) घट जाती है । इसी तरह कामकाज से जुड़ी परेशानियाँ न केवल हमारे परिवार , बल्कि जिदगी के हर पहलू पर असर डालती हैं । निजी , पेशे से जड़ी । और सामाजिक समस्याएँ एक - दूसरे पर लाजिमी तौर पर असर डालती हैं ।
आपके नजरिए को तय करने वाले कारक FACTORS THAT DETERMINE YOUR ATTITUDE
मैं आपसे कुछ सवाल पूछता हूँ - हम नजरिए के साथ ही जन्म लेते हैं , या उसे बड़ा होने पर विकसित करते हैं ? हमारा नज़रिया किन चीजों से बनता है ? अगर माहौल की वजह से जिंदगी के बारे में आपका नजरिया नकारात्मक ( negative ) हो गया है , तो क्या आप उसे बदल सकते हैं ? दरअसल हमारे नज़रिए का ज्यादातर हिस्सा हमारी जिंदगी के शुरूआती सालों में ही बन जाता है । यह सच है कि हम अपने मिज़ाज की कुछ खासियतों ( tendencies ) के साथ पैदा होते हैं , लेकिन बाद में हमारा जो नजरिया बनता है , उसे खास तौर से ये तीन चीजें ( factors ) तय करती हैं –
1 . माहौल ( Environment ) , 2 तजरबा ( Experience ) , 3 . शिक्षा ( Education ) इन्हें हम नजरिए के ती ' Es ' कह सकते हैं । अब इन तीनों पर नजर डालते 1 . माहौल ( Environment ) माहौल में ये चीजें शामिल होती हैं - • घर - अच्छा या बुरा असर ( 1lone - positive or negative influences ) • स्कूल - साथियों का दबाव ( School - pecr pressure ) • काम - मददगार , या जरूरत से अधिक नुक्ताचीनी करने वाला । सुपरवाइज़र ( Work - supportive or over critical supervisor ) मीडिया - टेलीविजन , अखबार , पत्रिकाएँ , रेडियो , फिल्में ( Media television , newspaper , magazines , radio , movies ) सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ( Cultural background ) • धार्मिक पृष्ठभूमि ( Religious background ) परंपराएँ और मान्यताएँ ( Traditions and beliefs ) • सामाजिक माहौल ( Social environment ) • राजनीतिक माहौल ( Political environment ) ऊपर बताए गए सारे माहौल मिल कर हमारी तहजीब बनाते हैं । घर हो , संस्था हो , या देश हो - हर जगह की अपनी एक तहजीब होती है । उदाहरण के तौर पर , आप एक स्टोर में जाते हैं , तो वहाँ के मैनेजर से लेकर सेल्स क्लर्क ( sales clerk ) तक को विनम्र , मददगार , दोस्ताना और खुशमिजाज़ से भरा पाते हैं ; फिर आप दूसरी दुकान में जाते हैं , तो वहाँ काम करने वालों को रूखा और बदतमीज़ पाते हैं । आप एक घर में जाते हैं , तो वहाँ माँ - बाप और बच्चों को तमीजवाला , मिलनसार और दूसरों का ख्याल रखने वाला पाते हैं , जबकि दूसरे घर में जाने पर हर आदमी को कुत्ते - बिल्लियों की तरह आपस में लड़ता पाते हैं । जिन देशों की सरकारों और राजनीतिक माहौल में ईमानदारी होती है , वहाँ के लोग भी आम तौर पर ईमानदार , कानून का पालन करने वाले और मददगार ।होते हैं । इसका उलटा भी उतना ही सही है । जिस तरह बेईमान और भष्ट माहौल में एक ईमानदार आदमी का जीना मुश्किल हो जाता है , उसी तरह ईमानदारी से भरे माहौल में बेईमान व्यक्ति को मुश्किल होती है । अच्छे माहौल में मामूली कर्मचारी की भी काम करने की शक्ति बढ़ जाती हैं , जबकि बुरे माहौल में अच्छा काम करने वाले की काम करने की शक्ति घट जाती है । तहज़ीब ( culture ) कभी नीचे से ऊपर की ओर नहीं जाती है बल्कि वह हमेशा ऊपर से नीचे की ओर आती है । हमें पीछे मुड़ कर देखना चाहिए कि हमने खुद के लिए और अपने आसपास के लोगों के लिए कैसा माहौल तैयार किया है । बुरे माहौल में लोगों से अच्छे व्यवहार की आशा नहीं की जा सकती । जहाँ कानून का न होना ही कानून बन जाता हो , वहाँ ईमानदार नागरिक भी चोर उचक्के और बेईमान हो जाते हैं । कुछ समय निकाल कर इस बात का गौर कीजिए कि हमारा माहौल हम पर । कैसे असर डालता है , और हम जो माहौल तैयार करते हैं , वह दूसरों पर कैसे असर डालता है ?
2 , तजरबा ( Experience ) अलग - अलग लोगों से मिले तज़रबे के मुताबिक हमारा व्यवहार भी बदल जाता है । अगर किसी इंसान के साथ हमें अच्छा अनुभव मिलता है , तो उसके बारे में । हमारा नजरिया अच्छा होता है , पर बुरा अनुभव मिलने पर हम सावधान हो जाते हैं । अनुभव और घटनाएँ हमारी जिंदगी के संदर्भ बिंदु ( reference point ) बन । जाते हैं । हम उनसे नतीजे निकालते हैं , जो भविष्य के लिए मार्गदर्शन ( guidelines ) की भूमिका निभाते हैं ।
3 . शिक्षा ( Education ) शिक्षा औपचारिक ( formal ) , और अनौपचारिक ( informal ) , दोनों तरह की होती है । आजकल हमलोग सूचनाओं के सागर में गोते लगा रहे हैं , लेकिन ज्ञान और समझदारी का अकाल पड़ा हुआ है । ज्ञान को योजनाबद्ध ढंग से समझदारी में बदला जा सकता है , और समझदारी हमें कामयाबी दिलाती है । शिक्षक की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण होती है । उसका प्रभाव अनंत काल ( eternity ) तक रहता है । इसके असर की लहरें अनगिनत हैं । शिक्षा ऐसी होनी चाहिए , जो हमें केवल रोजी - रोटी कमाना नहीं बल्कि जीने का तरीका भी सिखाए ।
सकारात्मक नजरिए वाले लोगों को कैसे पहचानें ? HOW DO YOU RECOGNISE PEOPLE WITH A POSITIVE ATTITUDE
जिस तरह सेहत खराब न होने का मतलब अच्छी सेहत नहीं होता , उसी तरह किसी इंसान के नकारात्मक ( negative ) न होने का मतलब यह नहीं होता कि वह सकारात्मक ( positive ) है । सकारात्मक नजरिए वाले लोगों की शख्सियत ( personality ) में कुछ ऐसी । खासियतें होती हैं , जिनकी वजह से उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है । ऐसे लोग । दूसरों का ख्याल रखने वाले , आत्मविश्वास से भरे , धीरज वाले और विनम होते हैं । ये लोग खुद से , और दूसरों से काफी ऊँची उम्मीदें रखते हैं , उन्हें अच्छे नतीजे हासिल होने की आशा रहती है । सकारात्मक नजरिए वाला आदमी हर मौसम में फलने वाले ( बारहमासी फल ) जैसा होता है । उसका हमेशा स्वागत किया जाता है ।
सकारात्मक नज़रिए के फ़ायदे THE BENEFITS OF A POSITIVE ATTITUDE
सकारात्मक नजरिए के कई फायदे होते हैं । इन्हें आसानी से देखा जा सकता है । लेकिन आसानी से दिखाई देनी वाली चीज़ को उतनी ही आसानी से अनदेखी भी कर दिया जाता है ।
सकारात्मक नज़रिया
आपके लिए फायदेमंद -
Best book how can I read seconds chapter
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